१. जब सिद्धार्थ थोड़ा चलने-फिरने योग्य हो गया, शाक्य जनपद के मुखिया इकट्ठे हुए और उन्होने शुद्धोदन से कहा कि बालक को ग्राह-देवी अभया के मन्दिर में ले चलना होगा |
२. शुद्धोदन ने स्वीकार किया और बालक को कपड़े पहना देने के लिये महाप्रजापति से कहा|
३. जब वह उसे वस्त्र पहना रही थी, सिद्धार्थ ने अत्यन्त मधुर वाणी में अपनी मौसी से पूछा कि उसे कहाँ ले जाया जा रहा है? जब उसे पता लगा कि उसे मन्दिर ले जाया जा रहा है, तो वह मुस्कराया | लेकिन शाक्यों के रीति-रिवाज का ध्यान कर वह चला गया।
४. आठ वर्ष की आयु होने पर सिद्धार्थ ने अपनी शिक्षा आरम्भ की |
५. जिन्हें शुद्धोदन ने महामाया के स्वप्न की व्याख्या करने के लिये बुलाया था और जिन्होंने सिद्धार्थ के बारे में भविष्यवाणी की थी, वे ही आठ ब्राह्मण उसके प्रथम आचार्य हुए|
६. जो कुछ वे जानते थे जब वे सब सिखा चुके तब शुद्धोदन ने उदिच्च देश के उच्च कुलात्पन्न प्रथम कोटि के भाषा-विद् तथा वैयाकरण, वेद, वेदांग तथा उपनिषदों तेनु पूरे जानकर सब्बमित्त को बुला भेजा | उसके हाथ पर समर्पण का जल सिंचन कर शुद्धोदन ने सब्बमित्त को ही शिक्षण के निमित्त सिद्धार्थ को सौंप दिया | वह उसका दूसरा आचार्य था|
७. उसकी अधीनता में सिद्धार्थ ने उस समय के सभी दर्शन- शास्त्रों पर अपना अधिकार कर लिया |
८. इसके अतिरिक्त उसने भारद्वाज से चित्त को एकाग्र तथा समाधिस्थ करने का मार्ग सीख लिया था । भारद्वाज आलार कालाम का शिष्य था | उसका अपना आश्रम कपिलवस्तु में ही था |
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